Sunday, April 30, 2006
सूखा
सूखी है नदिया
खाली गगरिया
पनघट हुए विरान
नदी किनारे
गांव है सूना
बँजर भए खलिहान
जाने कब थी
बिजली चमकी
कब बादल थे गरजे
कब सौंधी सी
महक उठी थी
कब जलधर थे बरसे
आग उगलते
सूरज ने
लाखों का जीवन फूंका
आँखों में
लहराया सावन
पर धरती पर सूखा ।।
कविता
मन का सागर बेहद गहरा
उसकी निधी पर अधरों का पहरा
दर्द का ताप जब भाप बनाता
भाव उमड़ कविता बन जाता ।।
उसकी निधी पर अधरों का पहरा
दर्द का ताप जब भाप बनाता
भाव उमड़ कविता बन जाता ।।
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