Friday, September 08, 2006

भांति भांति की दालें

दालों में प्रोटीन की मात्रा 20% से 25% तक होती है। यह गेहूँ से लगभग दुगनी और चावल से तिगुनी है तथा अण्डे, दूध और मांसाहार से मिलने वाली मात्रा से कुछ अधिक है। शायद इसी कारण दाल को गरीबों का प्रोटीन-पुंज भी कहा गया है। भारत के अधिकतर शाकाहारी लोगों के लिए दालों का महत्व इस बात से सपष्ट हो जाता है कि दुनिया में दालों का आयात करने वाले देशों में भारत पहले नम्बर पर है।


1.पालक और चने की दाल

सामग्री---

चने की दाल- एक कटोरी

पालक-- 250 ग्राम

प्याज़- एक

टिमाटर- एक

अदरक- एक इन्च का टुकड़ा

हरी मिर्च-- दो

नमक-- ¾ छोटा चम्मच

हल्दी---1/2 चम्मच
मक्खन
- इच्छा-अनुसार

विधी----

. चने की दाल को धोकर घंटे भर पानी में भीगने दें।

. पालक और मिर्च को धो कर डंडी निकाल कर काट लें।

. अदरक और प्याज़ छील कर काट लें। टिमाटर धोकर काट लें।

. दाल,पालक, मिर्च,प्याज़, टिमाटर, अदरक, नमक, हल्दी और एक कप पानी कूकर मे डालें।

. तेज़ आंच पर सीटी आने तक रखें और फिर आँच हल्की कर 15 मिनिट तक पकाएं।

. कूकर ठंडा होने पर खोल कर कड़छी से अच्छे से हिला कर पलटें।

. ऊपर से मक्खन डाल कर खाएं।

टिप्स---

. अपने स्वाद अनुसार दाल को गहरा और पतला कर सकते है।

. सब्ज़ियों को बहुत छोटे टुकड़ों में काटने की ज़रूरत नहीं है।
३. पानी की मात्रा कम कर आधा कप दूध डाल पकानेे से स्वाद बड़ जाता है।

क्रमश: ---

Thursday, September 07, 2006

एक नई शुरूवात

जगदीश भाई के आईने ने जब हमें दिखाया कि हम कौन से नम्बर के मेहमान है तो हम शर्म से पानी पानी हो गए। जी नहीं, उनके आइने में झांकने वाले हम 420 नम्बर के मेहमान नहीं थे, शर्मिन्दा तो हम 'मेहमान' शब्द पढ़ कर हुए थे क्योंकि जहां यह उनकी सुरुचि दिखा रहा था, वहीं हमारे बेढब तौर तरीके की ओर भी इशारा कर रहा था। इतने दिनों से हमारी रसोई में ढेरों मेहमान आ रहे है और हम उन्हें केवल ख्यालों के पुलाव पर टरका रहे है। कितने बेचारे अच्छे भोजन की आशा लिए व्यंजनों की तलाश में आए होगें और हमने उन्हें विचारों के मलवे से पटी वाक्यों की गलियों मे घुमा कर,थका कर,हंफा कर विदा कर दिया। धिक्कार है हम पर और हमारी रसोई पर। अरे! कुछ खिला नहीं सकते थे पर कम से कम अच्छे व्यंजनों की विधियां तो परोस ही सकते थे। उन्ही की महक से मुँह में आई लार से ज़रा गला तर और मन प्रसन्न हो जाता। हमने तो नारी के नाम पर ही बट्टा लगा दिया। अब कोई जीतू भाई, अनूप भाई, सागर भाई, संजय भाई, तरुण भाई ,समीर भाीई की तरह हमें भी रत्ना भाई कह जाए तो इसमें उसकी क्या गल्ती। ऐसा व्यवहार आमतौर पर पुरषों से आपेक्षित होता है। नारी जाति का तो मूल-मन्त्र ही पेट के ज़रिए दिल तक पहुंचने का है। मेहमान-नवाज़ी के गुर उन्हें घुट्टी में पिलाए जाते है। और हम नारी होकर भी अतिथी-सत्कार से चूक गए। ठीक कहता है टी.वी वाला कि भारतीए 'अतिथी देवो भव:' की सीख को भूल गए है। परन्तु देखा जाए तो इसमें हमारा कोई कसूर नहीं है, आप लोगों की संगत में हमें इतनी बातें याद आने लगी कि हम शब्दों के माया-जाल में उलझ कर रह गए। पर आगे से ऐसा नहीं होगा,हम तौबा करते है। आज से ही अपनी ब्लाग-स्पाट वाली पुरानी रसोई को नव-निर्मित कर वहां से सरल और उत्तम व्यंजन-विधियों की टिफिन सर्विस शुरू करते है। अलग स्थान से इस सेवा को आरम्भ करने का मंतव्य केवल यह है कि आप तक उत्तम क्वालिटी का सामान पहुंचे और विचारों के व्यंजनों में लगाई गई कभी हास्य और कभी वेदना की छोंक की छींटें असली पकवानों को दूषित न कर पाए। आखिर आपकी पत्नियों और अपनी भाबियों की ओर हमारा भी तो कर्त्तव्य है। आप आइए, उन्हें बुलाइए और शुभारम्भ पर फ़ीरनी से मुँह मीठा कीजिए।---

रत्ना की रैसिपीज़ लाई है व्यंजन हज़ार
रत्ना की रसोई में केवल पकते विचार



फ़ीरनी

फ़ीरनी

फ़ीरनी दूध और चावल के मिश्रण से तैयार की गई एक किस्म की खीर है। फ़रक केवल यह है कि इसमे चावल को पीस कर डाला जाता है जिस कारण इसका स्वरूप रबड़ी से अधिक मिलता है पर स्वाद खीर और रबड़ी दोनों से जुदा होता है। काश्मीरी विवाह में बारात की दावत में परम्परा के अनुसार फ़ीरनी ही परोसी जाती है। बर्फ की सिल्ली पर मिट्टी की चपनियों ( प्यालियों) में चांदी का वर्क लगी, बादाम-पिस्ता की हवाई(कतरन) से सजी, इलायची,जाफ़रान(केसर) और केवड़े से महकती ठन्डी फ़ीरनी को ज़ुबान पर रखते ही आत्मा तृप्त हो जाती है और दिमाग में केवल एक शब्द गूंजता है- अमृत-तुल्य या HEAVENLY.
हालांकि मिट्टी के बरतन में रखने से सोंधापन आता है पर कांच की कटोरी में रखी और फ्रिज में ठन्डी हुई फ़ीरनी भी काफी ज़ाएकेदार होती है।


सामग्री---

दूध- 1 लीटर फुल क्रीम
चावल- आधी कटोरी या 50ग्राम
चीनी-250 ग्राम या स्वादानुसार
छोटी इलायची- चार-पांच
केसर- दो तार या चुटकी भर
केवड़ा जल- आधा चम्मच
बादाम- 15-20
पिस्ता- 5-7
चांदी के वरक- दो

विधि-----

१.चावल को अच्छे से धो कर चार घन्टे तक पानी में भीगने दें ।
२.सिल पर या मिक्सी में डाल एक कनी रहने तक दरदरा पीस लें।
३.पिसे चावल में आधा कप पानी मिला कर घोल बना थोड़ा पतला कर लें।
४.दूध में छिलके समेत दो इलायची डाल भारी तले के बरतन में चढ़ा कर उबलने दें।
५.जब दूध लगभग तीन पाव रह जाए तो चावल के पतले घोल को हिला कर धीरे धीरे एक धार से दूध में डालें।
६.पिसा हुया चावल बहुत जल्दी तले में चिपकता है इसलिए लगातार दूध में कड़छी चलाते रहें।
७.गहरा होने पर चीनी डालें और पाँच मिनिट और पका कर गैस बंद कर दें।
८.ठंडा होने पर उसमें केसर,और इलायची पीस कर और केवड़ा डालें।
९.परोसने वाले पात्र में पलटें।
१०.चांदी का वरक लगा, बादाम और पिस्ते की कतरन ऊपर से बुरक दें।
११.फ्रिज में रख ठन्डा होने पर खाएं।

टिप्स---

१.बादाम और पिस्ते की हवाई (कतरन) काट कर बोतल में बंद कर फ्रिज मे कई दिन तक रखी जा सकती है।
२.बीस ग्राम छोटी इलायची के दानें और आधा ग्राम केसर मिला कर पीस कर बोतल में रख लें। इस्तेमाल में आसानी रहेगी।
३.दूध औटाते वक्त बरतन में कड़छी डालने से दूध की उबल कर गिरने की संभावना कम हो जाती है।
४.कन्डेंसड दूध मिलाने से दूध कम गहरा करना पड़ता है।
५. रुपहले कटोरे में पलट कर सुनहरे चम्मच से फ़ीरनी परोसने पर शाही अन्दाज़ का गुमान होता है।

Saturday, July 29, 2006

सफ़र के साथियो को सलाम

आज शनिवार है और कल इतवार,अर्थात आज आधे दिन का आराम व कल पूर्ण विश्राम। सो सोचते है कि आगे का सफरनामा (ब्लागस्पाट से वर्डप्रेस तक-भाग तीन ) तो हम सोमवार को सुनाएं, परन्तु अपने साथ सफ़र में सवार और हमारी पीड़ा में भागीदार श्रद्धालू-जन की शंकाओं का समाधान, टिप्पणियों की व्याख्या और प्रशंसा का अमृत पिलाने वालों का धन्यवाद आज ही करदें ताकि वे भी शांत एवं प्रसन्न मन से छुट्टी का आनन्द उठाएं और हम भी यह ढेड़ दिन पूर्ण रूप से अपने पतिदेव की सेवा में बिताएं, देव कृपा का थोड़ा मोल चुकाएं और अपना अगला जन्म सधाएं। वैसे हमारी हार्दिक इच्छा थी कि प्रत्येक साथी जन का जिक्र करते समय उसका नाम कुछ ऐसे लिखें कि करसर का स्पर्श पाते ही वह नाम प्रकाशमय हो जाए और बटन दबाते ही जिज्ञासु सीधा उस महान आत्मा के दर्शन का लाभ पा लें पर क्योंकि पिछले ढाई मास के कड़े परिश्रम के बाद भी हम यह कला नहीं सीख पाएं है सो अपने अल्प ज्ञान के लिए क्षमा प्रार्थी है।
सबसे पहले अनूप जी से शुरूवात करते है। भाई जी, गद्य की अपेक्षा हम पद्य गाना इस कारण पसन्द करते है क्योंकि पद्य लिखने केलिए कम टाइप करना पड़ता है। हमारे पास टाइप करने हेतु केवल तर्जनी ही है अत: उस पर काम का अधिक बोझ नहीं डालना नहीं चाहते।अगर रुष्ट होकर अकड़ गई तो हमारी सारी व्यवस्था ही डोल जाएगी। अन्य उगंलियों को नोटिस भेजा है जैसे ही काम पर आ जाएंगी आपका अनुकरण करते हुए गद्य में पद्य पिरो कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर देगें। दूसरा-- भेजा-बाज़ार में जब ताज़ी मौसमी तरकारी उपलब्ध नहीं होती तो हम डायरी के कोल्ड-स्टोरेज़ से कविता निकाल कर परोस देते है ताकि रसोई का चुल्हा बुझने न पाए। तीसरा- हम नारी स्वभाव से पीड़ित है। दिमाग से अधिक दिल को प्राथमिकता देते है और यह सत्य तो आप स्वीकारेंगे कि गद्य दिमाग की और पद्य दिल की उपज है। ज़रा सुनिए यह सप्तम स्वर कहाँ गूंज रहा है--


जब से हमने ब्लाग बनाया
और की शुभ शुरूवात
छाया जी आप संग चले हैं
दर पोस्ट हमारे साथ
आपको कैसे नमन करें हम
कैसे आभार जताएं
गुड़ खाकर हम भए है गूंगे
अब कैसे स्वाद बताएं ।।


नारद मुनि को हमारा सादर प्रणाम। जीतु भाई, आपने दर्शन बीस तारिख को दिए थे जबकि हमने कथा केवल उन्नीस तक की सुनाई है। अधिक अधीर न हों, बीस तारिख की गाथा (सोमवार को होने वाली ) में हम आपका उचित सत्कार करेंगे। दूसरा- सफरनामे का आरम्भ ब्लागस्पाट कस्बे से किया है पर अन्त वर्डप्रेस नगरी में होगा। तीसरा- नारद जैसे ज्ञानी अगर कन्फ्यूज़ हो सकते है तो हम जैसे तुच्छ जीवों की क्या बिसात। इस विचार ने घावों पर मरहम का काम किया है। चौथा- दोनों रसोइयों का विलय कर नया नाम " रत्ना रेस्ट्रोरेन्ट " करने का विचार है। ढाबे पर आकर बैठना लोगों को कम पसंद आ रहा है। अत: नामकरण संस्कार की क्या विधी है, कृपया मार्ग दर्शन करें।
मानोशी दीदी, प्रेमलता जीजी और प्रत्यक्षा जी आदर सहित स्नेह युक्त नमस्कार। सफर में महिला साथी न हो तो बातचीत का मज़ा ही नहीं आता। वे ही तो कभी मनोशी दीदी की तरह पीठ ठोंकती है,कभी लता जीजी समान मिश्री के शब्दों का शरबत पिलाती है और कभी प्रत्यक्षा जी की तरह आगे बात चलाने केलिए जिज्ञासा दिखाती है।साथ न छोड़िएगा आपके रहने से हमें काफी सहारा है।
आशीश भाई अब आप एक राज़ की बात गुपचुप कान करीब लाकर सुनिए। ऐवें शब्द हम पंजाबी इलाके से स्मगल करके लाए है। किसी से कहना मत। कभी कभार आप भी इस्तमाल कर लेना कोई घिस थोड़े ही जाएगा । इसी लेन देन पर तो दुनिया कायम है।
इस कान में फूंकें मंतर के संग ही आज की सभा समाप्त होती है।सोमवार को आपको बोर करने फिर हाज़िर होगें। तब तक हमारे लिए दुआ किजीए। मनीष भाीई आपकी दुआ के चलते ही वर्डप्रेस तक पहुंच पाएंगे ।दिल खोल कर दीजिए क्योंकि--

तुम एक दुआ दोगे हम दस लाख देगें

Friday, July 28, 2006

ब्लागस्पाट से वर्डप्रेस तक का सफ़र- भाग दो

द्वितीय चरण --------


सुबह आँख खुलते ही बिना दाँत चमकाए, बिना चेहरा छपाकाए, बिना बेड-टी सुड़काए, बिना पतिदेव को प्रेम से जगाए और बिना महादेव को शीश नवाए, हम बिस्तर से सीधे अपने ढाबे पर गिफ्टस ( टिप्पणियों ) का जायज़ा लेने जा पहुँचे । वहाँ जो नज़ारा देखा तो नींद से बोझिल आँखों को दो चार बार मला कि कहीं खड़े खड़े सो गए हो तो इस बुरे सपने से जग जाएं, हाथ पर चिकोटी भी काटी ताकि प्रूफ मिल जाए कि जो दिखाई दे रहा है वो वास्तव में सच है और जब बारीक सा नील का निशान बेहद साफ दिखाई पड़ा तो दिमाग ने ओवर-टाइम कर झट यह नतीजा निकाला कि हम हिन्दी चिट्ठा जगत् से निष्कासित कर दिए गए है । तभी तो ग्रह-प्रवेश के दिन भी कोई पकवान खाने तो क्या पानी पीने तक नहीं आया । हैरान परेशान दिल परन्तु यह मानने को तैयार नहीं हुया । आखिर जब हमने किसी से पंगा नहीं लिया, जितनी गिफ्ट(टिप्पणियां) मिली उतनी कमोबेश तोल कर वापिस कर दी, अच्छे नागरिक की तरह नियम कानून का पालन किया, परिचर्चा कल्ब मे भी आते जाते रहे फिर क्यों कोई हमारा हुक्का पानी बंद कर देगा। ज़रूर भगवान जी नराज़ हो गए है तभी सत्यनारायण-व्रत कथा की वणिक कन्या के समान कुछ का कुछ दिखाई दे रहा है । नहा धो कर प्रसाद खा कर आएं तो सब ठीक हो जाएगा । भारी मन से अपना काम निपटाया , पतिदेव को नाश्ता करवाया, तदोपरांत महादेव को दूध से नहलाया और मन में नन्हीं सी आशा लिए अपने ढाबे पर आ गए । दृश्य अभी भी जस का तस था । दिमाग कुलबुलाया पर दिल ने दलील दी कि अभी अभी धमाका हुया है लोग इधर उधर अटके हुए है, आवा जाही रुकी हुई है सो हो सकता है कि कोई यहाँ तक नहीं पहँच पा रहा है तो चलो हालात का जायज़ा लेने अक्षरग्राम/नारद के स्टेशन पर चलते है । वहीं यह भी देख लेगें कि हमारे पकवान का स्टाल एक नम्बर प्लेटफार्म पर है या दो, तीन या चार पर पहुँच गया है।
नारद स्टेशन पर लोग परेशान थे, मदद की पुकार लग रही थी । फिर भी स्थिति नियन्त्रण में थी । हम पाँच नम्बर प्लेटफार्म तक घूम आए पर हमारा स्टाल कहीं दिखाई नहीं दिया तो माथा ठनका कि ज़रूर कोरियर सर्विस में गड़बड़ी हुई है जब Sample ही नहीं पहुँचा तो लोग माल को कैसे जांचेगें और कैसे आंकेगे । सो गड़बड़ी का पता लगाने के लिए हम सर्वज्ञ जी के पास जा पहुँचे। उनकी पहली गेंद " mySQL में डाटाबेस क्रियेट कीजिए " सिर के ऊपर से निकल गई और बाकी की सब गेंदे आजू-बाजू से और हमारा स्कोर आखरी गेंद तक ज़ीरो रहा । वर्डप्रेस की पारी खेलने केलिए उन्होंने जो जो कहा था वो हमने नहीं किया था। जब वर्डप्रेस स्थापित ही नहीं किया तो गाड़ी कैसे चलेगी ? यह सोच हम मेन पैविलियन में गए और MyComputer,Places,Desktop,यहाँ तक कि Trash भी खंगाल आए पर mySQL नहीं मिला। हार कर वर्डप्रेस की गलियों में उसे खोजने चले। वहाँ पर वर्डप्रेस सिखाने का एक स्कूल दिखा तो हम मेन गेट खोल अन्दर घुस लिए पर स्कूल इतना बड़ा था कि Getting Started With WordPress का दरवाज़ा खोल जो भीतर गए तो दरवाजा दर दरवाज़ा खुलता गया और हम चक्करघिन्नी बनें बाहर निकलने की तरकीब भूल गए। अन्तत: Log Out करके ही बाहर आना पड़ा । पर वहाँ घूमते-घुमाते एक दरवाज़े पर Audio-Video Lessons का बोर्ड दिखा था सो फिरentry ली और दर दर लुढ़कते -पुढ़कते उस दरवाजें में जा घुसे। वहाँ भी सर्वज्ञ जी वाला आलाप चल रहा था सो नाक तक पके हुए हम बाहर आ गए और ठुड्डी पर हाथ धरे, बुड्ढे तोते पढ़ नहीं सकते और भैंस को बीन के सुर नहीं पचते की सत्यता पर विचार कर ही रहे थे कि पतिदेव की कार का दरवाजा खुलने बंद होने की खटाक से हमारी तन्द्रा टूटी तो पाया कि पिछले आठ घन्टे से हम लगभग लगातार वर्डप्रेस की गलियों में खाक छान रहे थे । इससे पहले कि देवों की तरह पतिदेव भी क्रोधित हो जाएं और ब्लागस्पाट की तरह हमारी ब्लोगिंग पर भी प्रतिबन्ध लग जाए, हमने प्रिय कम्प्युटर जी से, पतिदेव के काम पर जाते ही ,कल फिर मिलने का वादा कर, भारी मन से विदा ली।

इति द्वितीय चरण समाप्त ।।

Thursday, July 27, 2006

ब्लागस्पाट से वर्डप्रेस तक का सफ़र - भाग एक

बहुत सालों से उपहार में मिली डायरियों का सद्-उपयोग ( ??? ) हम मन की भड़ास निकालने केलिए करते थे पर जब पतिदेव के एक मित्र ने, जो कम्प्यूटर के महारथी और कई ब्लागों के स्वामी है हमें ब्लागिंग का गुरूमन्त्र दिया तो मानो बन्दर के हाथ झुनझुना लग गया। हम भूख-प्यास भूल ब्लागस्पाट की ट्रैक पर सरपट दौड़ पड़े, कीर्तिमान बनाया, वज़न भी घटा लिया क्योंकि कुछ तो ऊपरी माला का फालतू समान घट रहा था और कुछ की-बोर्ड पर ओवर-टाइम करते हाथ हर समय मुँह में छुट-पुट डालने में असमर्थ थे। यानि हर काम सुचारू रूप से चल रहा था और हम आम के मौसम में गुठलियों के दाम भी वसूल रहे थे कि एक धमाका हुया -- ब्लागस्पाट के इलाके में कर्फ़्यु लग गया और उस ओर जाने वाली सब गाड़ियां बंद । अक्षरग्राम/नारद के जंक्शन पर खड़े हम काफी देर वर्डप्रेस की ट्रैक पर दौड़ती गाड़ियों को टुकुर-टुकुर देखते रहे और फिर एक गाड़ी पकड़ उस पौश इलाके का जायज़ा लेने वर्डप्रेस के स्टेशन पर पहुँच गए । स्टेशन पर पैर धरते ही चट नाम पूछा गया और पट एक फ्लैट हमारे नाम कर दिया गया,वो भी फ्री में। हम खुश- वाह भई ! ऊँची दुकान, मालिक मेहरबान और फ्री का सामान। सच में उपभोक्ता का ज़माना है। काश हम उस समय अपने सितारे पढ़ पाते क्योंकि उस पल के साथ ही शुरू हुया हमारा एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे में गिरने निकलने का कष्टमयी सफर ।

प्रथम चरण------

फ्लेट मिलते ही हमें पता चला कि अन्दर तभी जा पाएंगे जब मेल बाक्स से कुंजी(password ) लेकर आएगें । खुशी-खुशी भागते हुए कुंजी लेकर वापिस पहुंचे पर बार बार लगाने पर भी ताला बंद और दरबान का सपाट सा जवाब " incorrect password ” । दो चार बार मेलबाक्स घूम आए पर मामला वही ढाक के तीन पात । बड़ी देर बाद समझ में आया जिसे हम " ओ ” पढ़ रहे थे वो वास्तव में जीरो था। राम-राम करते प्रवेश किया और तुरन्त ताला बदला ,एक बार चेक किया और जब बिना अड़चन ताला खुला तो हमने घर का जोगराफिया समझना शुरू किया ।
यहाँ कैटेगरी की क्यारी थी जिसमें हम अलग-अलग सब्जियां बो सकते थे । उनका import और Export भी कर सकते थे ।ब्लागस्पाट पर केवल पोस्ट लिखते थे यहां पेज भी लिख सकते थे । दोनों में फर्क क्या है पल्ले नहीं पड़ा पर सोचा चलो धीरे धीरे पता चल ही जाएगा। State of artका इलाका था सो भाषा भी हाई-फाई थी। एडिट को मैनेज़,Comment करने को Discussion करना और ब्लाग को Site कहा जाता था खैर Accent बदलने मे कितना वक्त लगता है ,साल भर अमरीका में रहकर आई बलिया की बिल्लो जब अमरीकन स्टाइल में अंग्रेज़ी बोल सकती है तो हम Edit को Manage क्यों नहीं कह सकते । अँग्रेज़ी मे M.A कोई ऐवें ही थोड़े किया है । बढ़िया इलाके में सब सुविधायों से युक्त घर मिला है अभी कुछ बदलाव करने की ज़रूरत नहीं है बस जल्दी से कुछ मीठा पका कर नारद जी को न्योता दे आएं ,यह सोच हमने अपनी शान में कुछ कसीदे लिखे (हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं------) ,सावन की डिश पकाई और नारद जी को नए घर का पता दे आए । बड़ी देर तक जब नारद जी के दर्शन नहीं हुए तो यह लगा कि एक तो हिन्दी जगत् का बोझ ऊपर से अभी- अभी भारत यात्रा से लौटे है । आजकल ग्रह-प्रवेश के न्योते भी ज्यादा ही मिल रहे है कहीं बिज़ी होंगें। देर सवेर हो ही जाती है आएंगें ज़रूर। आखिर हम उनके पुराने भक्त है। यह सोच कर इन्तज़ार करते करते रात के एक बजे आँख झपक गई और सपना देखा कि हमारे ढाबे पर लोगों की लम्बी लाइन लगी है। नारद जी सान्ताक्लाज़ की तरह गुपचुप ढाबे की चिमनी से प्रगट हो काली घनी मूँछों पर हाथ फेरते हुए पकवान का आनन्द ले टिप्पणी के खाली मोज़े में बढ़िया सा गिफ्ट डाल कर जा रहे है ।

इति प्रथम चरण समाप्त

Friday, July 21, 2006

सावन की सौगात

चन्दा के उजले चेहरे पर
घोर घटा घिर आई
गोरी के गोरे गालों पर
काली लट लहराई
लम्पट लट की इस हरकत से
गोरी तनिक तमक गई
मेघों के छूने से नभ में
चंचल चपला चमक गई
बांवरी बदरी लगी डोलने
सखी वात के साथ
अमृत अपने अंग छुपाए
पहुँची गिरीवर के पास
मधुर मिलन का संदेशा
वर्षा धरती पर लाई
घबराती शरमाती गोरी
पिया के अंक समाई
पावन प्रेम की पावस पाकर
हरित हुई हर क्यारी
गोरी के भी आँगन की
महक उठी फुलवारी
सुदूर सृष्टि में सृजित हुया
स्नेह संगम संगीत
अवनि पर अंकुरित हुई
नई संतति की रीत ।।

Wednesday, July 19, 2006

ब्लागस्पाट पर बैन छीन ले गया चैन

सावन का पहला सोमवार था । हम सुबह-सुबह शंकर जी के ध्यान में व्यस्त थे,आखिर उन्हीं की कृपा से हमारी रसोई ने हज़ार का स्कोर पूरा कर, दो सैन्चुरियां बना तीसरी केलिए लार टपकाई थी। आगे भी दिन दूनी रात चौगनी प्रगति की कामना से हम भगवन् को उनकी पसंद का प्रसाद पहुंचाने और मक्खन लगाने में जुटे थे कि कोई नासपीटा,बुरी नज़र वाला,अक्ल का दुश्मन जलकुकड़ा हमारी रसोई पर, बिना कोई नोटिस दिए ,एक बड़ा सा ताला डाल गया । मन में तो आया कि करमजले को बेलन से बेल कर तन्दूर में उतार दें पर बेलन व तन्दूर रसोई में सील-बंद और दुखदाई,मासूमों की बलि चढ़ा, आतंक फैलाकर एक आतंकवादी की तरह फुर्र । इसलिए उस दिन की सारी तपस्या पर ध्यान केन्द्रित कर श्राप दे डाला " जा दुष्ट, तेरी अक्ल का ताला तेरे भाग्य पर जा लगे ताकि तुझे दूसरो के कष्ट का अन्दाज़ा हो । पद का मद तुझे ले डूबे ।"
उसे श्राप देकर,ठण्डा पानी पीकर जब कुछ शान्त हुए तो सोचा" उसका जो होगा, सो होगा पर तेरा क्या होगा रत्ना । तेरी तो रसोई बंद, अब पिछवाड़े के चोर-दरवाज़े से एन्टरी कर भी ले पर बिजनैस तौ गिऔ । ऊपर से यह डर कि पता नहीं कब सूंघता हुया आ धमके और घर से उद्योग चलाने के लिए चलान कर दे। बेहतर यही है कि जमीन खरीद एक रेस्ट्रोरेन्ट खोल दें पर जेब (अक्ल) टटोली तो पाया कि इतनी रेज़गारी (जानकारी) पास में नही है पर फिर भी कुल जमा-पूंजी जोड़ और कुछ इधर उधर से उधार लेकर अपना ढाबा वर्ड-प्रेस पर खोलने का मन बना लिया। एक बोर्ड "रत्ना का ढाबा" वहाँ लगा कर कुछ सामान भी रख आए पर ससुरा कोई दाँव- पेंच ऐसा फंसा कि ढाबा चल न पाया। सर्वज्ञ जी से कई बार सलाह-मशवरा किया पर मामला वहीं का वहीं । अब हार कर पिछवाड़े के दरवाज़े पर स्वागतम् लिख कुछ स्कीम चला रहें है।
सुस्वागतम्
(1)-----------आप आएं, दोस्तों को लाएं और नानवेज में मटनपुलाव, चिकन बिरयानी रौग़नजोश,शामीकबाब,फिश-फिंगर्रज वगैहरा व वेज में काश्मीरी दमआलू खोया मटर,शाही पनीर,
मलाई कोफ्ता आदि का लुत्फ उठाएं । अचार चटनी पापड़ और एक बड़िया बनारसी पान फ्री में।
(2) विशेष----- पहले सौ कदरदानों को उपहार में एक आशीर्वाद
(3) नोट------- अच्छा टिप देनें वालों केलिए भविष्य में लकी ड्रा से इनाम देने की योजना पर विचार किया जा रहा है।
*************** आज हम देवें उधार कल करगें व्यापार****************
ध्यान दें--- ढाबा चलवाने मे मदद की आवश्कता है