शीशे सा दिल तोड़ दिया
बाद में सौरी बोल दिया
शीशा कब जुड़ पाता है
प्रतिबिम्ब तक बंट जाता है
नज़र दरारें आती है
किरचें भीतर धंस जाती है
आँख में जब आँसू है आता
मन का कोना भीग सा जाता
मन की सीलन सालेगी
रिश्ते को दीमक खा लेगी
कब तक चाहत टालेगी
कब तक प्रीत संभालेगी
कैसे मन की बात बताएं
कैसे उनको हम समझाएं
तोहफ़ों से नहीं खाइयां पटती
मन की चोटें यूँ नहीं मिटती
चुभन तो टीस उठाती है
चोटें नासूर बनाती है
नासूर जो हद से बड़ता है
तन का कोइ अंग भी कटता है
उस अंग की कमी सताती है
तब याद घड़ी वो आती है
जब पहली चोट लगाई थी
और प्यार की नींव हिलाई थी ।।
Thursday, June 29, 2006
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1 comment:
आशा है दिल परमानेन्ट नही टूटा है।
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