बापू की प्रतिमा बनवाएं
आदर्शों की बलि चढ़ाएं
दिल से विदेशी देसी परिवेष
राजनीति ने बदला भेस
रक्षक ही भक्षक बन जाएं
नित नए हथकन्डे अपनाएं
बदलें नीति दल और भेष
ऐसे नेता रह गए शेष
गली गली दंगे भड़काएं
प्रजातन्त्र का बिगुल बजाएं
ना कोई धर्म ना जाति विशेष
ऐसे नेता रह गए शेष
कुर्सी खातिर खून बहाएं
देश का अंग-अंग बांट के खाएं
काले कर्म हैं उजले वेश
ऐसे नेता रह गए शेष
घोर घोटाले घटित कराएं
तििस पर स्वयं को सही बताएं
रोज़ कचहरी होते पेश
ऐसे नेता रह गए शेष
उमर हमारी बड़ती जाए
तारीख़ अगली पड़ती जाए
निपटे हम, ना निपटे केस
गर्दिश में गाँधी का देश
कितनी हम तफ्तीश कराएं
दूजा गाँधी ढूंढ ना पाएं
गायब गाँधी,लाठी शेष
गुमशुदा है गाँधी का देश
राजनीति अब बनी है ज़िल्लत
सही नेता की है बड़ी किल्लत
नेतागीरि बस रह गई शेष
गर्त गिरा गाँधी का देश ।।
टैगः anugunj, अनुगूँज
Friday, June 30, 2006
अनुगूंज२०- नेतागिरी, राजनीति और नेता
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2 comments:
अरे वाह।
रत्ना जी, रसोई सही लगी, बिलकुल नैचुरल कुकिंग है आपकी । रिसिपी आपसे सीखनी होगी ।
छंदकारी, मतलब तरकारी वगैरह अच्छा पका लेती हैं ।
इस प्रविष्ठि में, व्यंग्य के मसाले डालकर सार-गर्भित छंदों में काफी कुछ कह गयी ।
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