Sunday, June 25, 2006

वक्त के पड़ाव

कई रोज़ से परिचर्चा की कड़ाही में प्रतिक्रियायों की आँच पर टी. वी
सीरियलज़ की गर्मागर्म भजिया तली जा रही थी । एकता कपूर द्वारा
पकाए गए बाला जी के प्रसाद के प्रति भक्तों की रुचि कुछ अधिक
ही थी तो भजिया खाने और प्रसाद का स्वाद चखने को हम भी लाइन
में लग लिए ।पर जब तक अपना नम्बर आया आँच मन्दी हो गई थी
भजिया ठन्डी हो गई थी और प्रसाद के नाम पर मिली केवल उसकी
खुशबू । हमने भी इसे हरि-इच्छा और भाग्य का लेखा मान खुशबू को ही
नासिका पथ सेे मस्तक तक पहुँचा दिया । अब बाला जी के प्रसाद की
महिमा तो जगज़ाहिर है पर उसकी गन्ध तक ने क्या कमाल किया ,इसका
पूरा हाल विस्तार से सुनाते है ।धीरज धरिएगा, सफर कुछ लम्बा
है ,कथा घिसी-पिटी और बाँचनेे वाला- अब क्या कहें --------

साल दर साल भांति रेत हाथ से फिसल गए
बीती कितनी रातें न जाने कितने दिन निकल गए
साहब सफलता की अनेकों सीड़ी चड़ गए
बच्चे बड़े होकर मेरे घोंसले से उड़ गए
हर किसी की नई राह इक नया आयाम था
मेरे चारों ओर फैला ऐश-ओ-आराम था
नहीं थी जिसे पल भर फुरसत
आज वो बेकार था
धीमे धीमे रेंगती घड़ी की
सुईयों से बेज़ार था ।
करने को नहीं था कुछ भी
वक्त कटता नहीं था काटे
सोचा सीरियल के पात्रों से
सुख-दुख ही अपना बांटे

पर था हर सीरियल का
बस एक सा ही रंग
रहते थे सारे नायक
दूजी स्त्रियों के संग
देख कर यह कारीगिरी
लगा हमको एक झटका
जाकर हमारा ध्यान
साहब की हरकतों पर अटका
सरल सुशील पति के
अजब लगने लगे ढंग
बेवजह की जिरह से
आखिर हो गए वो तंग
बोले,"इस ईडियट-बोक्स ने
अक्ल कर दी है तुम्हारी मन्द
करो काम कायदे का
और टी.वी रखो बन्द"

टी.वी किया बन्द
सोचा रिसर्च करें जारी
पर गृहस्थि की गर्त में थी
खो गई पिछली पढ़ाई सारी
पढ़ना हुया गुल तो
आई लिखने की बारी
कुछ ही दिनों में हमने
कई पैन्सिलें घिस मारी
मन लगा कर सुने जो
अब कविताएं सारी
मिलेगा ऐसा कौन
थी कठिनाई भारी
अन्त में बेचारे
पतिदेव ही फंसे
सुनकर हमारी रचना
बड़ी ज़ोर से हंसे

हंसी की उस कटार से
कुछ ऐसे कट गए
साहित्य के रण-क्षेत्र में
अब जम के डट गए
तपस्या हमारी देखकर
भगवन् को तरस आया
देवदूत भेज कर
रस्ता नया सुझाया
अन्जाने उस संसार में
जो बढ़ने लगे कदम
घड़ी की ओर ताकना भी
अक्सर भूले हम
नई सोच नए दृष्टिकोण
हमें सूझने लगे
समय की लहरों से
हंसकर हम जूझने लगे ।।

सौ बातों की एक बात, बाला जी की कृपा से एक नई शुरूवात हुई,
आप लोगों से मुलाकात हुई,मुफ्त में इतनी बात हुई,इसलिए हम तो हाथ जोड़ेगें
और बुलन्द आवाज़ में कहेंगे ---बाला जी की जय !!!!

3 comments:

अनूप शुक्ल said...

यह बात तो आपको सबसे पहली पोस्ट में बतानी चाहिये थी।लेकिन चलिये अब बता दी और बढ़िया
अंदाज में बताई। बधाई!

ई-छाया said...

बेहद हल्की फुल्की सरल सुंदर और पठनीय रचना। हमारा सौभाग्य कि आपकी हमसे चिठ्ठाजगत में मुलाकात हुई।

रत्ना said...

छाया जी धन्यवाद ।यह मेरा भी सौभाग्य है ।

अनूप जी,धन्यवाद ।
बहुत कुछ छुपाया है अनकही बातों में
बहुत कुछ बताएंगे अगली मुलाकातों में ।