Friday, June 30, 2006

अनुगूंज२०- नेतागिरी, राजनीति और नेता

Akshargram Anugunj
बापू की प्रतिमा बनवाएं
आदर्शों की बलि चढ़ाएं
दिल से विदेशी देसी परिवेष
राजनीति ने बदला भेस

रक्षक ही भक्षक बन जाएं
नित नए हथकन्डे अपनाएं
बदलें नीति दल और भेष
ऐसे नेता रह गए शेष

गली गली दंगे भड़काएं
प्रजातन्त्र का बिगुल बजाएं
ना कोई धर्म ना जाति विशेष
ऐसे नेता रह गए शेष

कुर्सी खातिर खून बहाएं
देश का अंग-अंग बांट के खाएं
काले कर्म हैं उजले वेश
ऐसे नेता रह गए शेष

घोर घोटाले घटित कराएं
तििस पर स्वयं को सही बताएं
रोज़ कचहरी होते पेश
ऐसे नेता रह गए शेष

उमर हमारी बड़ती जाए
तारीख़ अगली पड़ती जाए
निपटे हम, ना निपटे केस
गर्दिश में गाँधी का देश

कितनी हम तफ्तीश कराएं
दूजा गाँधी ढूंढ ना पाएं
गायब गाँधी,लाठी शेष
गुमशुदा है गाँधी का देश

राजनीति अब बनी है ज़िल्लत
सही नेता की है बड़ी किल्लत
नेतागीरि बस रह गई शेष
गर्त गिरा गाँधी का देश ।।


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2 comments:

ई-छाया said...

अरे वाह।

Prem Piyush said...

रत्ना जी, रसोई सही लगी, बिलकुल नैचुरल कुकिंग है आपकी । रिसिपी आपसे सीखनी होगी ।

छंदकारी, मतलब तरकारी वगैरह अच्छा पका लेती हैं ।

इस प्रविष्ठि में, व्यंग्य के मसाले डालकर सार-गर्भित छंदों में काफी कुछ कह गयी ।