Saturday, July 29, 2006

सफ़र के साथियो को सलाम

आज शनिवार है और कल इतवार,अर्थात आज आधे दिन का आराम व कल पूर्ण विश्राम। सो सोचते है कि आगे का सफरनामा (ब्लागस्पाट से वर्डप्रेस तक-भाग तीन ) तो हम सोमवार को सुनाएं, परन्तु अपने साथ सफ़र में सवार और हमारी पीड़ा में भागीदार श्रद्धालू-जन की शंकाओं का समाधान, टिप्पणियों की व्याख्या और प्रशंसा का अमृत पिलाने वालों का धन्यवाद आज ही करदें ताकि वे भी शांत एवं प्रसन्न मन से छुट्टी का आनन्द उठाएं और हम भी यह ढेड़ दिन पूर्ण रूप से अपने पतिदेव की सेवा में बिताएं, देव कृपा का थोड़ा मोल चुकाएं और अपना अगला जन्म सधाएं। वैसे हमारी हार्दिक इच्छा थी कि प्रत्येक साथी जन का जिक्र करते समय उसका नाम कुछ ऐसे लिखें कि करसर का स्पर्श पाते ही वह नाम प्रकाशमय हो जाए और बटन दबाते ही जिज्ञासु सीधा उस महान आत्मा के दर्शन का लाभ पा लें पर क्योंकि पिछले ढाई मास के कड़े परिश्रम के बाद भी हम यह कला नहीं सीख पाएं है सो अपने अल्प ज्ञान के लिए क्षमा प्रार्थी है।
सबसे पहले अनूप जी से शुरूवात करते है। भाई जी, गद्य की अपेक्षा हम पद्य गाना इस कारण पसन्द करते है क्योंकि पद्य लिखने केलिए कम टाइप करना पड़ता है। हमारे पास टाइप करने हेतु केवल तर्जनी ही है अत: उस पर काम का अधिक बोझ नहीं डालना नहीं चाहते।अगर रुष्ट होकर अकड़ गई तो हमारी सारी व्यवस्था ही डोल जाएगी। अन्य उगंलियों को नोटिस भेजा है जैसे ही काम पर आ जाएंगी आपका अनुकरण करते हुए गद्य में पद्य पिरो कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर देगें। दूसरा-- भेजा-बाज़ार में जब ताज़ी मौसमी तरकारी उपलब्ध नहीं होती तो हम डायरी के कोल्ड-स्टोरेज़ से कविता निकाल कर परोस देते है ताकि रसोई का चुल्हा बुझने न पाए। तीसरा- हम नारी स्वभाव से पीड़ित है। दिमाग से अधिक दिल को प्राथमिकता देते है और यह सत्य तो आप स्वीकारेंगे कि गद्य दिमाग की और पद्य दिल की उपज है। ज़रा सुनिए यह सप्तम स्वर कहाँ गूंज रहा है--


जब से हमने ब्लाग बनाया
और की शुभ शुरूवात
छाया जी आप संग चले हैं
दर पोस्ट हमारे साथ
आपको कैसे नमन करें हम
कैसे आभार जताएं
गुड़ खाकर हम भए है गूंगे
अब कैसे स्वाद बताएं ।।


नारद मुनि को हमारा सादर प्रणाम। जीतु भाई, आपने दर्शन बीस तारिख को दिए थे जबकि हमने कथा केवल उन्नीस तक की सुनाई है। अधिक अधीर न हों, बीस तारिख की गाथा (सोमवार को होने वाली ) में हम आपका उचित सत्कार करेंगे। दूसरा- सफरनामे का आरम्भ ब्लागस्पाट कस्बे से किया है पर अन्त वर्डप्रेस नगरी में होगा। तीसरा- नारद जैसे ज्ञानी अगर कन्फ्यूज़ हो सकते है तो हम जैसे तुच्छ जीवों की क्या बिसात। इस विचार ने घावों पर मरहम का काम किया है। चौथा- दोनों रसोइयों का विलय कर नया नाम " रत्ना रेस्ट्रोरेन्ट " करने का विचार है। ढाबे पर आकर बैठना लोगों को कम पसंद आ रहा है। अत: नामकरण संस्कार की क्या विधी है, कृपया मार्ग दर्शन करें।
मानोशी दीदी, प्रेमलता जीजी और प्रत्यक्षा जी आदर सहित स्नेह युक्त नमस्कार। सफर में महिला साथी न हो तो बातचीत का मज़ा ही नहीं आता। वे ही तो कभी मनोशी दीदी की तरह पीठ ठोंकती है,कभी लता जीजी समान मिश्री के शब्दों का शरबत पिलाती है और कभी प्रत्यक्षा जी की तरह आगे बात चलाने केलिए जिज्ञासा दिखाती है।साथ न छोड़िएगा आपके रहने से हमें काफी सहारा है।
आशीश भाई अब आप एक राज़ की बात गुपचुप कान करीब लाकर सुनिए। ऐवें शब्द हम पंजाबी इलाके से स्मगल करके लाए है। किसी से कहना मत। कभी कभार आप भी इस्तमाल कर लेना कोई घिस थोड़े ही जाएगा । इसी लेन देन पर तो दुनिया कायम है।
इस कान में फूंकें मंतर के संग ही आज की सभा समाप्त होती है।सोमवार को आपको बोर करने फिर हाज़िर होगें। तब तक हमारे लिए दुआ किजीए। मनीष भाीई आपकी दुआ के चलते ही वर्डप्रेस तक पहुंच पाएंगे ।दिल खोल कर दीजिए क्योंकि--

तुम एक दुआ दोगे हम दस लाख देगें

7 comments:

Shuaib said...

दुआ दी और पैसे निकालो - बहुत खूब लिखा है

Jitendra Chaudhary said...

अमां बाकी सब तो ठीक है लेकिन आपको ये गाथा, नये ढाबे पर लिखनी थी, काहे अब भी रसोई मे ही पका रही है।ढाबे पर ज्यादा ध्यान दें, नही तो ग्राहक भाग जाएंगे।

ढाबे का नाम कभी भी बदला जा सकता है (Dashboard/Option/General) में जाकर।किसी भी परेशानी के लिये आवाज दीजिएगा। रविवार से गुरुवार तक आपकी सेवा मे तत्पर। मौजूद है,इन्टरनैट पर।

ई-छाया said...

रत्ना जी,
निःशब्द कर दिया आपने। आपका लिखा हुआ पढना मुझे अच्छा लगता है, इसलिये टिप्पणियां किये बिना जा नही पाता। बहुत बहुत धन्यवाद।

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया ! देवसेवा से निपट लें फिर आपको लिंक लगाना बताया जाये।

डॅा. व्योम said...

बहुत अच्छा और सहज जीवन्त भाषा में आपने लिखा है यह शैली तो ललित निबन्ध के लिए बहुत अच्छी है। मेरा विचार है कि आप अच्छे ललित निबंध लिख सकती हैं।
डॉ॰व्योम

Tarun said...

रत्ना की रसोई में गध नाम का पकवान भी पकने लगा वो भी इतना स्वादिष्ट मजा आ गया।

Pratyaksha said...

वाह ! मज़ा आ गया