Friday, July 28, 2006

ब्लागस्पाट से वर्डप्रेस तक का सफ़र- भाग दो

द्वितीय चरण --------


सुबह आँख खुलते ही बिना दाँत चमकाए, बिना चेहरा छपाकाए, बिना बेड-टी सुड़काए, बिना पतिदेव को प्रेम से जगाए और बिना महादेव को शीश नवाए, हम बिस्तर से सीधे अपने ढाबे पर गिफ्टस ( टिप्पणियों ) का जायज़ा लेने जा पहुँचे । वहाँ जो नज़ारा देखा तो नींद से बोझिल आँखों को दो चार बार मला कि कहीं खड़े खड़े सो गए हो तो इस बुरे सपने से जग जाएं, हाथ पर चिकोटी भी काटी ताकि प्रूफ मिल जाए कि जो दिखाई दे रहा है वो वास्तव में सच है और जब बारीक सा नील का निशान बेहद साफ दिखाई पड़ा तो दिमाग ने ओवर-टाइम कर झट यह नतीजा निकाला कि हम हिन्दी चिट्ठा जगत् से निष्कासित कर दिए गए है । तभी तो ग्रह-प्रवेश के दिन भी कोई पकवान खाने तो क्या पानी पीने तक नहीं आया । हैरान परेशान दिल परन्तु यह मानने को तैयार नहीं हुया । आखिर जब हमने किसी से पंगा नहीं लिया, जितनी गिफ्ट(टिप्पणियां) मिली उतनी कमोबेश तोल कर वापिस कर दी, अच्छे नागरिक की तरह नियम कानून का पालन किया, परिचर्चा कल्ब मे भी आते जाते रहे फिर क्यों कोई हमारा हुक्का पानी बंद कर देगा। ज़रूर भगवान जी नराज़ हो गए है तभी सत्यनारायण-व्रत कथा की वणिक कन्या के समान कुछ का कुछ दिखाई दे रहा है । नहा धो कर प्रसाद खा कर आएं तो सब ठीक हो जाएगा । भारी मन से अपना काम निपटाया , पतिदेव को नाश्ता करवाया, तदोपरांत महादेव को दूध से नहलाया और मन में नन्हीं सी आशा लिए अपने ढाबे पर आ गए । दृश्य अभी भी जस का तस था । दिमाग कुलबुलाया पर दिल ने दलील दी कि अभी अभी धमाका हुया है लोग इधर उधर अटके हुए है, आवा जाही रुकी हुई है सो हो सकता है कि कोई यहाँ तक नहीं पहँच पा रहा है तो चलो हालात का जायज़ा लेने अक्षरग्राम/नारद के स्टेशन पर चलते है । वहीं यह भी देख लेगें कि हमारे पकवान का स्टाल एक नम्बर प्लेटफार्म पर है या दो, तीन या चार पर पहुँच गया है।
नारद स्टेशन पर लोग परेशान थे, मदद की पुकार लग रही थी । फिर भी स्थिति नियन्त्रण में थी । हम पाँच नम्बर प्लेटफार्म तक घूम आए पर हमारा स्टाल कहीं दिखाई नहीं दिया तो माथा ठनका कि ज़रूर कोरियर सर्विस में गड़बड़ी हुई है जब Sample ही नहीं पहुँचा तो लोग माल को कैसे जांचेगें और कैसे आंकेगे । सो गड़बड़ी का पता लगाने के लिए हम सर्वज्ञ जी के पास जा पहुँचे। उनकी पहली गेंद " mySQL में डाटाबेस क्रियेट कीजिए " सिर के ऊपर से निकल गई और बाकी की सब गेंदे आजू-बाजू से और हमारा स्कोर आखरी गेंद तक ज़ीरो रहा । वर्डप्रेस की पारी खेलने केलिए उन्होंने जो जो कहा था वो हमने नहीं किया था। जब वर्डप्रेस स्थापित ही नहीं किया तो गाड़ी कैसे चलेगी ? यह सोच हम मेन पैविलियन में गए और MyComputer,Places,Desktop,यहाँ तक कि Trash भी खंगाल आए पर mySQL नहीं मिला। हार कर वर्डप्रेस की गलियों में उसे खोजने चले। वहाँ पर वर्डप्रेस सिखाने का एक स्कूल दिखा तो हम मेन गेट खोल अन्दर घुस लिए पर स्कूल इतना बड़ा था कि Getting Started With WordPress का दरवाज़ा खोल जो भीतर गए तो दरवाजा दर दरवाज़ा खुलता गया और हम चक्करघिन्नी बनें बाहर निकलने की तरकीब भूल गए। अन्तत: Log Out करके ही बाहर आना पड़ा । पर वहाँ घूमते-घुमाते एक दरवाज़े पर Audio-Video Lessons का बोर्ड दिखा था सो फिरentry ली और दर दर लुढ़कते -पुढ़कते उस दरवाजें में जा घुसे। वहाँ भी सर्वज्ञ जी वाला आलाप चल रहा था सो नाक तक पके हुए हम बाहर आ गए और ठुड्डी पर हाथ धरे, बुड्ढे तोते पढ़ नहीं सकते और भैंस को बीन के सुर नहीं पचते की सत्यता पर विचार कर ही रहे थे कि पतिदेव की कार का दरवाजा खुलने बंद होने की खटाक से हमारी तन्द्रा टूटी तो पाया कि पिछले आठ घन्टे से हम लगभग लगातार वर्डप्रेस की गलियों में खाक छान रहे थे । इससे पहले कि देवों की तरह पतिदेव भी क्रोधित हो जाएं और ब्लागस्पाट की तरह हमारी ब्लोगिंग पर भी प्रतिबन्ध लग जाए, हमने प्रिय कम्प्युटर जी से, पतिदेव के काम पर जाते ही ,कल फिर मिलने का वादा कर, भारी मन से विदा ली।

इति द्वितीय चरण समाप्त ।।

3 comments:

ई-छाया said...

रत्ना जी,
वाह वाह, अब तो मै भी फरसतिया जी की तरह कहूंगा कि आप गद्य ही लिखा करें। सच में तकनीकी क्षेत्र में होने के कारण मै कभी कल्पना भी नही कर सकता था कि आपको क्या क्या व्यावहारिक कठिनाइयां आ सकती हैं। यह एक संकेत है कि चिठ्ठा लेखन जन जन तक तब तक नही पंहुचेगा जब तक कि यह तकनीकी रूप से बेहद सुगम न हो।

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब। कल ही हम वर्डप्रेस की परेशानियों से जूझ रहे थे ऐसे ही।आपका विवरण पढ़कर
लग रहा है आपने हमारी बात कही।

Manish Kumar said...

आप अभी blogspot पर ही हैं ना ?