Thursday, May 04, 2006

आभार

पिछले कुछ वर्षों में हैरी पोटर्र की धूम और दुकानों में हिन्दी की पुस्तकों पर जमती धूल मेरे मन पर विषाद की परत बन कर छा रही थी । बार-बार यह अफ़सोस होतो था कि ---

सोच कर विचार कर
अनुभवों के आधार पर
कवि ने एक रचना रची
सोचा, लोग पढ़ेगे
विवेचना करेगें
धार पर धरेगें
कुछ खामियां बताएगें
थोड़ा बहुत सराहेगें
धीमे से गुनगुनाएगें
परन्तु--
न सुनाई गई, न किसी ने पढ़ी
न अपनाई गई, न सूली चढ़ी
वो शब्दों विचारों की सुन्दर लड़ी
रही चन्द बन्द पन्नों में जड़ी ।।

तभी जाने कहाँ से चमत्कार हुया, नारद जी का अवतार हुया और जो उन्होंने हिन्दी जगत् का विराट स्वरूप दिखाया तो आँखें खुली की खुली रह गई । कड़छी /कलम थामने की आदी ,गठिया ग्रस्त उंगलियों को की-बोर्ड पर कसरत करने का भूत सवार हो गया और मैं Wonderland की Alice बनी एक ब्लाग से दूसरे ब्लाग पर भटक कर आनन्दित होती रही । बस फ़रक केवल यह था कि मेरे साथ ख़रगोश की जगह चूहा (mouse) था । भाव विभोर होकर मैं उन लोगों के प्रति नतमस्तक हो गई जो देश से हज़ारों मील दूर रह कर भी हिन्दी से जुड़े है और ऐसे लोगों के लिए प्रेरणा स्तंभ है जो अंग्रेज़ी को ऊंचा स्तर दिखाने की पहली सीड़ी मानते है। मुझे अंग्रेज़ी से कोई शिकवा या शिकायत नहीं है, यह तो भाषा है,विचारों का आदान-प्रदान करने का एक साधन मात्र । कष्ट तो वो देसी अंग्रेज़ देते है,जो 'अपनों को छोड़ो,गैरों से नाता जोड़ो ' की मानसिकता रखते है क्योंकि शायद यही मानसिकता अपनों से अपनों को दूर करती है,भाई से भाई पर गोली चलवाती है और देश, समाज,परिवार व स्वंयम् इन्सान के पतन का कारण बनती है।।

7 comments:

उन्मुक्त said...

अपने देश में भी हिन्दी से प्रेम करने वाले हैं

Yugal said...

रत्ना जी कविता के माध्यम से एकदम सत्य कहा है आपने।
हिन्दी चिठ्ठाकार एवं हिन्दी चिठ्ठे पूरे विश्व में हिन्दी को पहचान दे रहै हैं।
आज इंटरनेट पर हिन्दी साईटें देखकर गर्व का अहसास होता है। हिन्दी लेखनी कि गजब की धूम यहां मची है।
इटंरनेट पर हिन्दी को बढावा देने में यदी किसी का नाम होगा तो वो होंगे चिठ्ठाकार।

अनुनाद सिंह said...

वाह रत्ना जी,

आपकी भाषा का प्रवाह तो चूहे के कर्सर से भी तेज है | आपकी भावनाओं में समुद्र सी गहराई है | सच कहा है, "बहुरत्ना वसुन्धरा" ( यह धरती अनेकों रत्नों से भरी पडी है )

Udan Tashtari said...

वाह, रत्ना जी,
बहुत बढिया लिखा है....
समीर लाल

Manish Kumar said...

दिल की बात कही है आपने रत्ना जी ! मैं खुद एक साल हिन्दी रोमन में लिखता रहा पर लोगो ने समय समय पर आ कर सूचना दी कि भईये अब तो WIN 98 में भी unicode लिखी जा सकती है । सच अन्तरजाल पर ये मुहिम चलाने वाले निश्चय ही बधाई के पात्र हैं ।

Udan Tashtari said...

"भाव विभोर होकर मैं उन लोगों के प्रति नतमस्तक हो गई जो देश से हज़ारों मील दूर रह कर भी हिन्दी से जुड़े है "

--हम खुश हुये आपके इस भाव से।।। :)

समीर लाल

Manish Kumar said...

अरे मेरा comment यहाँ से गायब कैसे हो गया ? :(