कई दिनों से रत्ना की रसोई में health food पक रहा है, यानि नपा-तुला और शक्तिदायक तत्वों से भरा हुया । बेचारे मेहमान तो तरीफ़ कर खा रहे है पर पकाने वाली ज़रा बोर हो गई और सोचा कि क्यों न कुछ चटपटा व्यंजन पकाया जाए। खूब कैलोरी/शब्दों से भरपूर । अब हमारे पकवानों को परोसने के लिए डिनर-सेट (computer set) और उसकी प्रयोग विधि क्योंकि पति-देव की देन है सो इस बार उनकी पसंद पर कुछ पक रहा है , वैसे मसालेदार चाय और गर्मा-गर्म पकौड़े तो सभी को अच्छे लगते है ,फिर देर किस बात की ,बस आप भी लुत्फ़ उठाइए ।
परसों सुबह ज्यों ही आँखें हमने खोली
फोकस में थी आई पति की सूरत भोली
खिड़की से दिखता आकाश,नयन रहे थे नाप
अजीब से तेवर लिए, बैठे थे चुपचाप
अख़बार और चाय बिना चेहरा था मुरझाया
हालत उनकी देखकर हमें उन पर तरस आया
पूछा हमने प्यार से,"क्यों जी ,चाय पीएंगे?"
बोले,"बिना तुम्हारे हम किस तरह जीएंगे"
यह सुनते ही हमें हुया खुद पर कुछ अभिमान
अपनी धुन में करने लगे हम अपना गुणगान्
"जानते है जानम्,प्यार हमें हो करते
हमसे बिुछड़ने का सोच कर हर दम रहे हो डरते
तभी तो हमारी मौत का देखा है बुरा सपना
न गमगीन हो ,न दुखी हो, न जी जलाओ अपना
सपने भी साहब कभी होते है सच्चे
सपने देखकर तो घबराते है बच्चे
कसम तुम्हें हमारी हमसे न छुपाओ
क्या सोच रहे हो ज़रा हमें भी बताओ"
देखा दाएं बाएं थोड़ा हिचकिचाए
मूँछो में मुस्काते बोल ये फरमाए-
"कसम दी है तुमने तो सच कह रहे है
वरना गुलाम बन हम सालों से रह रहे है
तुम्हारे जाने का होगा यकीनन् बहुत ही गम
पर वो रोने धोने से हो पाएगा न कम
हमारी तड़प देखकर तड़पेगी रूह तुम्हारी
तुम्हें कष्ट दें यह फितरत नहीं हमारी
यही सोच जानम् खुशी से हम जीएंगे
जाम ज़िन्दगी का लुत्फ़ ले पीएंगे
अपने घर में लेंगे खुल कर हम अंगड़ाई
आखिर उमर कैद से छुट्टी है हमने पाई
सुबह-सुबह पार्क में करेंगे रोज़ कसरत
हसीनों को वहाँ देखने की पूरी होगी हसरत
कुछ भी हम करेंगे न कोई देगा ताने
पेपर पलंग पर पटक कर घुस जाएंगे नहाने
दोस्तों संग घर पर अपने शामें हम बिताएंगे
बारी-बारी उनके घर पर दावतें उड़ाएंगे
अपना कमाया पैसा करेंगे खुद पर खर्च
ख़ुदा न करे हो गया जो हमें कोई मर्ज़
तो झट से हो जाएंगे हम हस्पताल भर्ती
भली लगेंगी नर्सें हरदम सेवा करती
मिलेगी भाभियों से हरदम सहानुभूति
उस आनन्दमयी समय की क्या सुखद है अनुभूति
ऊपर तुम रहोगी देवी- देवता के साथ
नीचे हम थामेंगे किसी अप्सरा का हाथ"
उनके ख़्याली द़ेग में
पुलाव पक रहा था
जलन की ज्वाला से
हमारा दिल दहक रहा था
खांसे हम खांसी झूठी
तो तन्द्रा उनकी टूटी
हकीकत में वापिस आए
घबरा कर बड़बड़ाए-
"चलो,हटो,छोड़ो,
यूँही वक्त ना गवांओ
जाकर ज़रा गर्मा-गर्म
चाय तो ले आओ
सच कहती हो सपने
कभी होते नहीं सच्चे
सपने देखकर तो
खुश होते है बच्चे"
पाँव पटक कर हमने
ऐसी चाय थी पिलाई
आज़ तलक तक जिनाब़ को
नींद ही न आई ।।।
Sunday, May 07, 2006
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8 comments:
वाह भई वाह,
मज़ा आ गया,
कभी आलू के पराठे भी बनाइये।
अरे रत्ना जी,
सुनाने के लिये इतनी लम्बी कविता बस एक चाय में. यह तो पूरा खाना खिलायें तभी सुन सकते हैं.
:)
समीर लाल
हाय, क्या मैं आपके पति से मिल सकता हूँ? शायद कोई ग़म बाँटने वाला मिल जाए :-)
शानदार चाय रही।
बढ़िया है। कामना है कि आपके पति भी आपको कुछ पिलायें तथा आपके भी मनोभाव बतायें।
धन्यवाद । सुझाव सम्बन्धित विभागों को भेज दिया गया है । आशा है शीघ्र ही अमल होगा ।
पाँव पटक कर हमने
ऐसी चाय थी पिलाई
क्या शानदार चाय है।
अब ये तो वो ही बतायेंगे की ये चाय का असर था या पैर का ;) BTW जिनाब नही जनाब होता है
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