चुनाव की थी तैयारी
विचार विमर्श हुया जारी
समस्या थी विकट
किस को दें टिकट
जो दल की स्थिती सुधारे
और नैया पार उतारे
आडवानी ने धीरे से
चाँद अपनी सहलाई
गोया दु:खती रग दिखलाई
बोले---
इन्द्रा जी की बड़ी बहू ने
किया नाक में दम
इस विदेशी ताकत से
अब कैसे निपटें हम
तिस पर वोटर चाहते है
कि तारे तोड़ कर लाओ
वरना सीधे-सीधे बच्चू
गद्दी छोड़ कर जाओ ।
यह सुनते ही अटल जी
कवि चिंतन से जागे
सरके थोड़े आगे
अनमोल वचन ये दागे
"हम श्री राम के है भक्त
भए उनकी कृपा सशक्त
सो अपना वचन निभाएंगे
तारे ला दिखलाएंगे
जब इतने सिने सितारे है
टी.वी. पर ढेरों तारे है
अपने तो वारे न्यारे है
फिर क्यों थक कर सब हारे है।
देख अटल के अटल इरादे
सब को हिम्मत आई
और चाँदनी-चौंक की टिकट
श्रद्धा से तुलसी की भेंट चढ़ाई
सोचा--
बहू है देश के टी.वी. की
नहीं अमेठी, राएबरेली की
परिवार की लाज बचाएगी
सोनिया को सबक सिखाएगी
स्वपन-सुन्दरी को फिर सबने
राज कमल भिजवाया
हेमा के संग फ्री में उन्होंने
धर्म-सम्राज्य भी पाया
सोनिया जी यह चाल देखकर
मन ही मन झुंझलाई
उनके पति की चाल गई थी
उन पर ही आज़माई
शुरू हुई फिर अभिनेता को
नेता करने की होड़
हर इक टोपी लेकर दौड़ा
बौलीवुड की ओर
प्रोडूयसर को धता बता कर
बुक की सब तारीखें
किसी को दुगनी कीमत दे दी
और किसी को टिकटें
फेंक मुखौटा अभिनेता भी
खालिस नेता बन बैठे
करेला कदाचित् नीम चढ़े तो
क्यों न कुछ कुछ ऐंठे
आखिर उनकी चमक से ही तो
भारत चमक रहा है
ना जाने क्यों चिरकुट वोटर
फिर भी सिसक रहा है ।।
Monday, May 15, 2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
8 comments:
लिखा अच्छा है आपने, पर पोस्ट पुरानी लगती है. दो तीन साल पहले लिखती तो सार्थक रहता. :-)
India Shining के नारे वाले पिछले चुनावों का अच्छा चित्रण है एवं कही आप जनता का मर्म भी छिपा है.
रत्ना जी आपकी भाषा में बहुत प्रवाह है, गति है और सरलता भी है |
रत्ना जी कविता अच्छी है।
थोडा पुराने समय को परिलक्षित किया है पर अच्छी लगी।
पिछले चुनाव की याद दिला गई ये कविता । बहुत खूब !
बहुत अच्छी कविता है रत्ना जी। आपके पास इतने शब्दों का ख़ज़ाना कहां से आता है?
Wah Ratna ji...bahut khub likhi hai ye kavita...mann ko bha gayee :)
daad kabool karein
Post a Comment