अल्लाह से न तो भगवान लड़ रहा है
मुहम्मद से न ही राम लड़ रहा है
ये तो है अहम् से अहम् की लड़ाई
अच्छे भले इन्सान की जिसने दुर्गत बनाई
तिस पर तुर्रा इसे कहें ईश्वर की इच्छा
हमारा नहीं ये तो मौला का हिस्सा
होश नहीं खुद का करें बातें खुदाई
लगता है शर्म, हया दोनों ने बेच खाई
ऐ मालिक, देख तेरे बन्दे क्या कर रहे हैै
अपनी खुदगर्ज़ी तेरे माथेै मढ़ रहे है
कसूर इनका तूने हमेशा भुलाया
यकीनन इसी बात का है फायदा उठाया
दुनिया में ले आ तू फिर से कयामत
कोई भी दोषी रहे ना सलामत
कयामत के बाद केवल इन्सां बचें
न कोई हिन्दू, न कोई मुसलमान दिखे ।।
Monday, May 01, 2006
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5 comments:
आओ रत्ना, आने मे बहुत देरी कर दी? आज रसोई मे ज्यादा काम था क्या?
क्या बनाया है? खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है। लखनऊ की होने के हमारी पड़ोसी हुई।चलो अच्छा है, लखनऊ से और लोग आ रहे है।
अब हमे तुम्हारी रसोई से लजीज लजीज पकवान मिलेंगे वो भी नजाकत और नफ़ासत के साथ परोसे हुए। है कि नही।
हिन्दी चिट्ठाजगत मे आपका बहुत बहुत स्वागत है।
चिठ्ठाजगत में स्वागतम्
बहुत अच्छी कविता बनी है,
बधाई।
वैसे आज के ताजा समाचार हैं--
डोडा में नरसंहार, 22 हिंदुओं की हत्या
होंसला अफ़जाई का शुक्रिया । कोशिश करेगें देश के खाने की महक
आप तक पहुंचती रहे ।।
रसोई में हिंदू-मुश्लिम व्यंजन! वाह बधाई!
हिंदू-मुश्लिम अगर व्यंजन बन जायें तो फिर कोई झगड़ा ही ना रहे......रत्ना स्वागत है, व्यंजन जानदार है
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