१. नन्ही मुन्नी
चिल्लाती है नन्हीं मुन्नी
मम्मी-मम्मी औ री मम्मी
मैंने काटी नहीं चिकोटी
फिर भी भैया खींचे चोटी
अब देखो है मुझे चिढ़ाता
तान अँगूठा मुँह बिचकाता
मुझसे अपना काम कराता
संग अपने पर नहीं खिलाता
जल्दी से इसको समझाओ
चाहे तो इक चपत लगाओ
पर पापा से कुछ नहीं कहना
आखिर मैं हूँ इसकी बहना ।।
२. रवि बेचारा, काम का मारा
सुबह होने को आई है
हल्की सी तरूणाई है
काला कंबल फैंक रवि ने
ली पहली अंगड़ाई है
अभी उठ कर मुस्काएगा
चाँद सा मुख दिखलाएगा
धुली धूप को धारण कर
काम पर फिर लग जाएगा
किरणों को बिखराएगा
रस्तों को चमकाएगा
देहरी देहरी दस्तक देकर
घर-घर में घुस जाएगा
ओस की परत हटाएगा
कलियों को महकाएगा
जीवन को जीवित रखने में
अपना कर्त्तव्य निभाएगा
जब पहर दूसरा आएगा
वो उकता कर झुंझलाएगा
नाक चढ़ा और भंवें सिंकोड़
धीरे धीरे गर्माएगा
घूरेगा, धमकाएगा
कहीं लू की चपत लगाएगा
धरती के रोने सुबकने पर
वो पिघल के कुछ नरमाएगा
मन ही मन अकुलाएगा
खिसियाकर आँख झुकाएगा
सांझ की मीठी घुड़की सुनकर
कोने में छिप जाएगा
हाय, कोई न उसे मनाता है
थक टूट कर वो घर जाता है
इक आग को सीने में भर कर
रोज़ खाली पेट सो जाता है
Tuesday, July 11, 2006
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5 comments:
बहुत बढ़िया कवितायें लिखीं दोनो। वाह,बधाई!
सहज सरल सुंदर और मनोरम्
बहुत प्यारी कवितायें हैं
अति सुंदर मनभावन। बधाई।
बहुत अच्छे !
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