Wednesday, July 12, 2006

देखा मैंने उसे इलाहाबाद-लखनऊ पथ पर

इलाहाबाद-लखनऊ मार्ग में ढेरों रेलवे क्रोसिंग पड़ती है ।अनगनित बार हम इस रास्ते को नाप चुके है पर एक बार भी ऐसा नहीं हुया कि सभी क्रोसिंग खुली मिली हों ।किसी न किसी क्रोसिंग पर ब्रेक ज़रूर लगती है और गाड़ी रुकते ही चना-चबेना या मूंगफली के पैकिट पकड़े,खीरा- ककड़ी और मौसमी फलों को डलिया में सजाए, पास ही अंगीठी पर भुनते भुट्टों का गुलदस्ता हाथ में थामें,बच्चों की कई जोड़ी उत्सुक आँखें कार के शीशे से चिपक अंदर तक झांक जाती है । महानगरों में टरैफिक लाइट पर इससे मिलता-जुलता नज़ारा आप रोज़ देखते होंगे और यह दृश्य इतना आम है कि बातचीत, सोच-विचार,किताब,अखबार, मोबाइल या लैप-टाप में मशगूल आप उनकी उपस्थिती से बिल्कुल अन्जान बने बैठे रहते है । परन्तु एक बार जो हमारी गाड़ी इलाहाबाद से पचास किलोमीटर दूर कुण्डा की क्रोसिंग पर रुकी तो डराइवर की घुड़की,गनर की वर्दी और छत कीी लाल-बत्ती को नज़र-अन्दाज़ करता हुया, आत्म विश्वास से भरपूर एक दस- बारह साल का बच्चा,पिछली सीट पर विराजमान, शीशा खोल सिगरेट का आनन्द लेते पतिदेव, से बोला----
बच्चा- पहाड़े सुनेंगे ?
पति- किसका जानते हो ।
ब०-- मुझे तो सबे आते है, तुमे जो याद है वो सुना दूं ।
प०-- चलो , १९ का सुनाओ
बच्चे ने बिना अटके पूरा पहाड़ा सुना डाला ।
प०-- अब १७ का सुनाओ ।
ब०- ऐसे मुफ्त में क्यों सुनाऊं,दो रुपये दोगे ?
पतिदेव की उत्सुकता जाग चुकी थी सो बोले,' जितने सुनाओगे हर एक का दो रूपया दूंगा ।
उस चतुर नन्हे सेल्सज़मैन ने फटाफट 18 से लेकर 2 तक सारे पहाड़े सुना डाले और फिर बोला ः उल्टे सुनाऊ तो क्या देंगे (2*9=18,2*8=16,2*7=14---- )
मोल-भाव तीन रुपये पर तय हुया ।
19 और 18का पहाड़ा उसने उसी तत्परता से उल्टा सुना दिया ।
पूछने पर किससे और कहाँ सीखा तो जवाब मिला-- खुदै सीखा है ।
पतिदेव ने 50 का नोट थमाते हुये कहा,-सब रखलो ,इनाम है ।
इस पर बच्चे ने पूरे अमिताभ बच्चन के अन्दाज़ में कहा -- साहिब मुझे मेरी मेहनत का पैसा दें,इनाम-विनाम मैं नहीं लेता ।
पति-- क्या काम करते हो ?
बच्चा-- गियान ( ज्ञान ) बेचता हूँ ।
और इससे पहले कि हम कुछ ओर पूछते वो किसी दूसरे ज्ञान के खरीददार की खोज में गाड़ियों की भीड़ में खो गया था। अनूप जी ने जब जानवर चराते उस बालक का जिक्र किया तो मेरे दिमाग में इस नन्हे सूरमा की तस्वीर कौंध गई और उसका आप सब से परिचय कराने का मन हुया । जब भी वहां से गुजरती हूँ तो नजरें उसे खोजती है ताकि मै उस ज्ञानी के विषय में कुछ और ज्ञान बंटोर सकूं ।

9 comments:

अनूप शुक्ल said...

जितना अनुभव पढ़ने में रोचक लगा उतनी ही सोच के तकलीफ भी हुई की उस बेचारे का ज्ञान सड़क पर ही बटता रहा।

ई-छाया said...

ओह दर्दनाक है, किस बात का गर्व करते हैं हम?

Pratyaksha said...

रोचक अनुभव !
लेकिन मेरा विश्वास है कि वो बच्चा ज्यादा दिन सडक पर ज्ञान नहीं बेचेगा. जिसमें ये जज्बा है वो एक दिन कहीं दूर जायेगा ही

रत्ना said...

मैं प्रत्यक्षा जी से सहमत हूँ, क्योंकि जिसकी खुदी इतनी बुलंद हो, वो खुद खुदा से छीन लेता है । उसे किसी की मदद गवारा नहीं होती ।

रवि रतलामी said...

ज्ञान बेचने का नया सेल्समेनशिप जाना.

सच है, बुद्धि है तो लहरें भी गिनी जा सकती हैं

Srijan Shilpi said...

ज्ञान बेचने वाला वह बालक तो अद्भुत है ही, भाई साहब यानी आपके पतिदेव भी कुछ कम नहीं। कभी उनसे भी तो परिचय कराइए।

प्रेमलता पांडे said...

ऐसा अनुभव पढ़कर विकास का माथा झुक जाता है।
-प्रेमलता पांडे

Manish Kumar said...

वाह ! आशा है वो बालक ज्ञान के पथ पर आगे बढ़ गया होगा ।

Ashish Gupta said...

अतिसुंदर और अतिमर्मातंक। मैरी भी सभी के समान ये कामना है कि इतना होनहार बच्चा कुछ कर दिखाये। पर ये दर्द भी कि शायद ये नही हो पायेगा। बच्चा कितना ही होनहार हो, गली के बच्चों के साथ समाज और पुलिस कैसा बर्ताव करती है, शायद अपनी बुद्धि का पूरा विकास ना कर पाये या करने दिया जाये...