Thursday, July 13, 2006

आप जीएं हज़ारों साल,साल के----

यह दुआ, आशीर्वाद,इच्छा,मन्नत, चाहत और शुभकामना है ,आप सब ब्लागरज़ के लिए जिनकी बदौलत हमारी रसोई एक हज़ार व्यक्तियों के समक्ष भोजन परोसने का मील-पत्थर पार कर पाई। आप में से कुछ हमारे गरीबखाने पर बिना नागा आए, हर व्यंजन का प्रेम से स्वाद लिया और हर बार अच्छा सा टिप देकर गए, ऐसे सभी कदरदानों को हमारा, एयर-इन्डिया के महाराजा के अन्दाज में, झुककर धन्यवाद। कुछ अन्य मेहरबान है जो दस्तरखान पर आए तो रोज़ ,नज़ाकत से चखकर भी गए पर तारीफ में तकल्लुफ बरत गए और टिप केवल एक-आध बार ही टपकाया, उन्हें हम लखनवी नफासत से ज़हे-नसीब कहेंगें । और जहाँ तक उन साहिबान का सवाल है, जो कभी- कदार, भूले भटके आ पहुँचे और सूंघ कर आगे बड़ गए, उन्हें भी कम से कम अंग्रेज़ी स्टाइल का THANKYOU तो कहना ही पड़ेगा, आखिर सीखे हुए मैनरज़ की इज्ज़त दाँव पर है ।शायद इस थैंक्यु की आड़ में उनके इकलौते आगमन को देखकर हमारे दिल से निकली यह आह छिप जाए---

वो आए हमारे घर ,खुदा की कुदरत है
कभी हम उनको,कभी अपने घर को देखते है ।

अब उनका भी क्या कसूर । आजकल पिज्जा,बरगर,डिब्बा-बंद और टैटरा-पैक का ज़माना है सो हमने तो मन को समझा लिया है कि समय का फेर है, बाज़ार में उत्पादनों का ढेर है और प्रतिष्ठित ब्राण्ड नई कम्पनी पर सवा सेर है। इसलिए जो नहीं है उसे भूलो औऱ अंटी का माल टटोलो। काफी हिसाब-किताब किया तो पाया कि लगभग 40 से 50 लोगों ने रोज़ हमें कृतार्थ किया है। अब इस उपलब्धि को देख हम स्वयं को माँ अन्नपूर्णा की उपाधि तो नहीं दे सकते ,पाँच सितारा होटल में शेफ की जगह लिए आवेदन भी नहीं भर सकते,ढाबे के काके से पंजा लड़ाना भी मुश्किल है पर रत्ना की रसोई को सुचारू रूप से चलता गृह-उद्योग मान अपनी पीठ तो ठोंक ही सकते है आखिर बुज़ुर्गों ने कहा है अपना सम्मान स्वयं करें और क्योंकि यह भी कहा है कि शुभ सोचने से शुभ होता है अत: अपने उज्जवल भविष्य की कल्पना में यह सोचना भी हमारा धर्म हो जाता है कि हमारा उद्योग आकाश की ऊंचाईयां को छू रहा है, हम सम्मानित किए जा ऱहे है,जगह जगह चर्चे हो रहे है औऱ कोई भावी ब्लागर किसी साथी ब्लागर की तारीफ़ में कह रहा है--- “ आप बहुत बढ़िया लिखते है। आपकी रचना में रत्ना जी के लेखन की झलक है।”

अरे भई, वाह! उस आनन्दमयी समय की क्या सुखद है अनुभूति !

आप हैरान हो रहे है,हँस रहे है ?-

चलिए छोड़िए, सपने सजाना और हवाई किले बनाना तो बड़ी हिम्मत का काम है,वो भी सबके सामने, ये तो औरतों की कला है,मर्द बेचारे क्या जाने सपने सजाना,वो तो चैन से सो भी नहीं सकते। वो लोग तो गाल़िब के सुर में सुर मिला यही कहते है---

हम को मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के बहलाने को गाल़िब यह ख्याल अच्छा है ।।

7 comments:

ई-छाया said...

रत्ना जी,
आपके सारे व्यंजन स्वादिष्ट हैं, आपको ढेरोंढेर बधाइयाँ हजात का आंकडा पार करने के लिये, और धन्यवाद हमें खिलाने के लिये।

Kaul said...

बधाई हो। बहुत जल्द आप का गणक पाँच अंकों में पहुँचे, ऐसी कामना है -- और आप के लेखन के कारण विश्वास भी।

अनूप शुक्ल said...

आपको बहुत-बहुत बधाई!

Ashish Shrivastava said...

बहुत बहुत बधाई !

Pratyaksha said...

ये तो बहुत बढिया लिखा . दुकान खूब चलेगी :-)

संजय बेंगाणी said...

एक टिप्पणी का भुगतान मैं भी कर देता हूँ. ;)
बधाई हो आपको.

Sagar Chand Nahar said...

इतनी जल्दी हजार का अंक छूने पर बधाई, आपके व्यंजन वाकई स्वादिष्ट होते हैं।
“ आप बहुत बढ़िया लिखती है। आपकी रचना में रत्ना जी के लेखन की झलक है।”